शांति समिति की बैठक और माॅक ड्रिल सिर्फ दिखावा, 50 साल में होली में एक भी सख्त निर्देश का पालन नहीं हुआ


धनबाद। देश की कोयला राजधानी धनबाद में शांति समिति की बैठक और माॅक ड्रिल हर साल सिर्फ दिखावा और खानापूर्ति है। 50 साल में होली में एक भी सख्त निर्देश का पालन नहीं हुआ है। बैठक में जिला और पुलिस प्रशासन के दर्जनों बड़े छोटे अधिकारी मौजूद रहते हैं। जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ व्यवसायियों और समाजसेवियों को भी बैठक में बुलाया जाता है। सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द के साथ होली मनाने की बात कही जाती है। डीजे और फूहड़ गीतों पर प्रतिबंध का सख्त निर्देश दिए जाते हैं। हुड़दंगियों पर सख्ती के साथ कानूनी कार्रवाई करने का भी निर्देश डीसी और एसएसपी की ओर से दिया जाता है। इसके बावजूद हर मुहल्ले में दबंगों और लफंगों की ओर से कानफाड़ू साउंड में फूहड़ गीतों के साथ डीजे बजाया जाता है। जहां डीजे बजाया जाता है, वहां आसपास के लगभग 40 से 50 घरों के लोगों को काफी परेशानी होती है। उनके घरों के खिड़कियां और दरवाजे तक में कंपन्न होने लगता है। ह्रदय रोगियों, बीमार और बुजुर्गों को काफी दिक्कत होती है। डीजे के कानफाड़ू साउंड के कारण शारीरिक रूप से स्वस्थ लोगों के भी सिर में दर्द होने लगता है। 

फोन करने पर रिसीव नहीं करते हैं थानेदार, डीएसपी, एसपी और एसएसपी

जानकारों का कहना है कि आम जनता अगर थानेदार, डीएसपी, एसपी और एसएसपी को फोन करते हैं तो ये लोग जनता का सेवक की बजाय खुद को बहुत बड़े अधिकारी समझते हैं और काॅल तक रिसीव नहीं करते हैं। पहले 100 नंबर और अब 112 नंबर पर डायल के बावजूद स्थानीय थाना से पुलिस घंटों बाद कभी कभार इक्के-दुक्के जगहों पर पहुंचती हैं। खूनी संघर्ष या बड़ी घटनाएं होने पर ही पुलिस हरकत में आती है। उसमें भी घटनास्थल पर पहुंचने में पुलिस टीम को एक से दो घंटे का समय लग जाता है। लोगों का कहना है कि हर मुहल्ले में डीजे और फूहड़ गीतों से समाज शर्मशार होता है लेकिन, दबंगों और हुड़दंगियों पर कानूनी कार्रवाई करनेवाले सरकारी कागजों पर तैनात मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी नजर तक नहीं आते हैं। सुबह से रात तक शराब के नशे में डूबे किसी भी मुहल्ले में हुड़दंगियों पर कार्रवाई नहीं होती है। 

सरकारी कागजों पर तैनात रहते हैं मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी और जवान 

लोगों का कहना है कि सरकारी कागजों पर होली में तीन दिनों तक रोस्टर और समय के हिसाब से मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी और जवान मुहल्ले और सड़कों पर तैनात रहते हैं। अगर धरातल पर जांच करें तो ये लोग कहीं भी नजर नहीं आएंगे। आज तक गोदी मीडिया ने कभी भी सही खबरें न तो न्यूज़ चैनलों में प्रसारित किया है और न ही किसी अखबार में खबर छापी है। तथाकथित अधिकारी जो कहते हैं, वही खबरें प्रसारित करते हैं और छाप देते हैं। ग्राउंड रिपोर्टिंग कभी नहीं करते हैं। क्योंकि गोदी मीडिया जानते हैं कि हमलोग पत्रकारिता करने नहीं बल्कि, चाटुकारिता करने आये हैं। वरना प्रेस कॉन्फ्रेंस में चाय और बिस्कुट जो मिलता है, वह भी नहीं मिलेगा।

 गोदी मीडिया रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ नहीं बल्कि, अधिकारियों, नेताओं और तस्करों के साथ खेलते हैं होली 

 गुलामी से मिली आजादी हिंदुस्तान का गोदी मीडिया रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ नहीं बल्कि, अधिकारियों, नेताओं और तस्करों के साथ होली खेलते हैं। आज से 30 से 40 साल पहले की बात करें तो भले ही गिने-चुने फोटोग्राफर और पत्रकार थे, लेकिन वे लोग रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ ही उमंग और उल्लास के साथ होली खेलते थे। अब यह सब अतीत की बातें होकर रह गई है। अधिकतर लोग मोबाइल पर होली की बधाई दे देते हैं। गिने-चुने लोग ही रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाकर रंग और अबीर लगाते हैं। वसूलीबाज अजय और उसके गुर्गे मनोज शर्मा, नवीन टोपीबाज, काना, नरेंद्र, लंगड़ा मंझय, दल्ला संदीप और पलटू वर्मा समेत कई सड़कछाप पतलकार भी कोयला तस्करों के घर जाकर होली खेलते हैं। गणेश यादव, जैकी, हरेंद्र चौहान, पप्पू दुबे, विजय यादव समेत एक दर्जन से अधिक कोयला चोर और तस्करों के पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं। 

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